Wednesday, March 2, 2011

अलविदा


भूलना मुश्किल तो था
पर मुश्किल हमें मंजूर थी
चाहत की वो मंजिल
ख्वाब से कोसों दूर थी

भूल के जो ना भूलना था
हमने वो भुला दिया
आज उनका हर गिला शिकवा
सब मिटा दिया

तकदीर ने तस्वीर
जो पलकों में सजाई थी
पल पल उसमे दर्द था
हर पल एक रुसबाई थी

कोशिशें हज़ार की पर
सभी तो नाकाम थी
भीड़ में से हम एक थे
अपनी यही पहचान थी

जान कहता था जिसे मैं
उससे ही अंजान था
पत्थरों का वो खुदा
मेरे लिए भगवान था

मांग के पाये प्यार से प्यारी
मुझे मेरी हार है
इसमें थोडा दर्द सही पर
सुकून बेशुमार है

मेरी तनहाई ही
अब मेरी हमराज़ है
दिल की दुनिया में मेरे
आंसुओं का राज़ है.



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