बेवजह समझाने में
अलफ़ाज़ जाया मत करना
इल्तेज़ा है दिल की तुमसे
मायूस मत करना
दिल के हर ज़ज्बात को
ज़ाहिर मत करना
उलझन में था कल तक
तेरी हर रुसवाई से
अब दूर करके हर उलझन
उसे और पैदा मत करना
इल्तेज़ा है दिल की इतनी
पास मेरे हरदम रहना
माँगा है सिर्फ तुम्हें
मदहोशी के आलम में
बन करके इक ख्बाव बस
आँखों से ओझल मत होना
इल्तेज़ा है दिल की तुमसे
ख्वाब पूरा हर करना
बेबस हूँ तेरे हुस्न से
अब तन्हाई से डर लगता है
यूँ पास लाके ज़ालिम
खुद से जुदा मत करना
इल्तेज़ा है बस यही
मेरे बनके तुम रहना.
09/04/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं .... !!
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है .... !!
धन्यवाद .... !!